राहु,
नाम ही काफी है
ख़ौफ के लिए....
ज्योतिषाचार्य जी की कलम से....
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राहु |
राहु
ज्योतिष शास्त्र में राहु अशुभ ग्रह के रूप में जाना जाता है कहा जाता है की जब राहु की महादशा या अन्तर्दशा आती है तो व्यक्ति एक बार बीमार अवश्य पड़ता है| कई बार तो जातक को कौन सी बीमारी है इसका भी पता नहीं चल पाता है। ज्योतिष में इस ग्रह को छाया ग्रह माना जाता है तथा इसी ग्रह के कारण सूर्य तथा चंद्र ग्रहण होता है। राहु केतु ग्रह के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है।कहा जाता है की जब देवों और दानवों को अमृत देने के लिए भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अमृत पिलाने लगे तब इस पंक्ति में राहु केतु भी छुप गए चूकि इन्हें अमृत से वंचित किया जा रहा था इन्होंने समय का लाभ उठाते हुए स्वयं ही अमृतपान करना प्रारम्भ कर दिया।
सूर्य
और चंद्र ने यह सब
देख लिया और तुरंत ही
विष्णु भगवान को बता दिया
विष्णु भगवान क्रुद्ध होकर इन पर उसी
कड़छी से प्रहार किया
जिससे अमृत परोसा जा रहा था
इस प्रहार से एक का
शिर उड़ गया और
दूसरे का धड़ उड़
गया। चुकि इन दोनों ने
थोड़ा अमृत का स्वादन कर
लिया था अतः उनकी
मृत्यु न हो सकी
तदनन्तर तपस्या करने से इन्हें भी
ग्रहों में सम्मिलित कर लिया गया।
स्थान
– राहु ग्रह पर्वत शिखर तथा वनों में संचार करते हैं।
दिशा
– नैऋत्य कोण
रत्न
– गोमेद
दृष्टि
– नीचे देखते हैं। सप्तम के साथ-साथ
नवम दृष्टि भी मानी जाती
है।
जाति
– म्लेक्ष
रंग
– काला अथवा नीला
दिन
– शनिवार
प्रथम भाव में राहु का फल
राहु
ग्रह यदि आपके लग्न में है तो वैसा
जातक पराक्रमी तथा अभिमानी होता है।
ऐसे
व्यक्ति का रुझान शिक्षा
के क्षेत्र में कम ही होता
है।
यही
कारण है ये लोग
उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते है
।
आपको
बहुत जल्दी ही यश मिलता
है ।
ऐसा
जातक दुष्ट स्वभाव का होता है।
उसे मस्तिष्क रोग होने का खतरा बना
रहता है। ऐसा व्यक्ति स्वार्थी तो होता ही
है साथ ही साथ राजद्वेषी
तथा नीच कर्म करने वाला, दुर्बल एवं कामवासना में लिप्त रहने वाला होता है।
जातक
को चांदी की सिकड़ी गले
में पहननी चाहिए।
बहते
जल में नारियल प्रवाहित करना चाहिए।
दूसरे
भाव में राहु का फल
यदि
किसी की जन्मकुंडली में
दूसरे भाव में राहु है तो जातक
दाँत में होने वाले पायरिया रोग से ग्रसित होता
है।
वैसा
व्यक्ति रोगी और चिड़चिडे़ स्वभाव
का होता है।
इनके
पारिवारिक जीवन में तनाव बना रहता है यदि अन्य
अशुभ ग्रह भी साथ में
हो तो कोई न
कोई पारिवारिक व्याघात का सहन करना
पड़ता हैं।
जातक
परदेश जाकर धन अर्जन करता
है।
अपने
कुटुंब के प्रति इनकी
भाषा कठोर होती है। धन कमाने के
लिए ऐसा जातक कुछ भी करता है।
इस स्थान का राहु धन
और परिवार के लिए अनुकूल
नहीं होता है।
किसी
शस्त्र के आघात से
व्यक्ति की मृत्यु होने
का डर बना रहता
है।
अशुभ
राहु का उपाय
अपनी
माता के सुख दुःख
का ख्याल रखे तथा उनसे मधुर सम्बन्ध बनाये रखे।
अपने
ससुराल पक्ष से कोई भी
इलेक्ट्रॉनिक वस्तु नहीं लेना चाहिए।
चांदी
का एक ठोस गोला
हमेशा अपने पास में रखें।
हनुमान चालीसा में छिपे जिंदगी के सूत्र
तृतीय
भाव में राहु का फल
तृतीय
भाव में राहु हो तो वह
जातक सुंदर, दृढ़ शरीर, मांसल भुजाएं, उन्नत वक्ष स्थल एवं सामर्थ्यवान व्यक्ति होता है।
जातक
पराक्रमी और बलशाली होता
है।
अपने
दादा के गोद में
खेलने वाला होता है। जातक की जान पहचान
भी प्रभावशाली लोगो के साथ होती
है ।
ऐसा
जातक उत्तरोत्तर उन्नति करता है।
ऐसा
व्यक्ति पुलिस या सेना में
विशेष रूप से सफल होता
है। ये अपने भाइयो
या बहनो में बड़े या छोटे होते
है। ऐसा व्यक्ति योगाभ्यासी, विवेकी, प्रवासी, पराक्रम शून्य, अरिष्टनाशक तथा उद्योगपति होता है।
अशुभ
राहु का उपाय
शरीर
पर कोई न कोई चांदी
का आभूषण अवश्य पहनें।
भाइयों
से कोई उपहार न लें तो
अच्छा रहेगा।
चौथे भाव में राहु का फल
यदि
आपके जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव
में राहु हो तो व्यक्ति
कपटी ह्रदय वाला होता है।
इनका
व्यवहार भी बहुत अच्छा
नहीं होता है।
धोखा
देने में यह जातक कुशल
होता है तथा समय
पड़ने पर बड़े से
बड़ा झूठ बोल लेता है।
चतुर्थ
भाव में राहु ग्रह के होने पर
व्यक्ति दुःखी, क्रूर, असंतोषी तथा झूठ बोलने वाला होता है।
इनकी
माता दीर्घायु होती है।
ऐसा
व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र में बहुत ही आगे बढ़ता
है।
इनकी
वाणी में दम्भ और अहंकार होता
है जिसके कारण कई बार इनका
कार्य भी ख़राब हो
जाता है।
यदि
राहु अशुभ हो और चन्द्रमा
भी कमजोर हो तो जातक
पैसे के मामले में
दुखी रहता है।
अशुभ
राहु का उपाय
शरीर
पर कोई न कोई चांदी
का आभूषण अवश्य पहनें।
बहते
जल में हरा धनिया या बादाम अथवा
दोनों जल में प्रवाहित
करना चाहिए ।
पंचम भाव में राहु का फल
पंचम
भाव में राहु की स्थिति बहुत
अच्छी नहीं होती है।
ऐसा
जातक क्रोधी एवं हृदय रोगी होता है।
इन्हे
अपने संतान का दुख सहन
करना पड़ता है।
पंचम
भाव में राहु जातक को भाग्यशाली बनाता
है।
ऐसा
व्यक्ति पौराणिक ग्रंथों का ज्ञाता होता
है। ऐसे जातक चिंतक या दार्शनिक होते
हैं।
यह
अपने माता पिता के धन का
उपयोग करने वाला होता है। गृह-कलह से भी ऐसा
जातक परेशान रहता है।
ऐसा
जातक प्यार में भी धोखा खाता
है। जातक से बड़े भाई
बहन का कोई न
कोई ऑपरेशन जरूर होता है।
अशुभ
राहु का उपाय
अपने
पास चांदी का बना हुआ
हाथी रखें।
पत्नी
के साथ पुनः विवाह करें।
मांस
मदिरा का सेवन न
करे।
छठे भाव में राहु का फल
जन्मकुंडली
में छठे भाव में राहु अच्छा माना जाता है।
यहां
राहु शत्रुओं को नष्ट कर
देता है। छठे भाव के राहु से
मनुष्य का बल बुद्धि
पराक्रम और अन्तःकरण स्थिर
रहता है।
ऐसे
जातक को अपने चाचा
मामा आदि से सुख की
प्राप्ति नहीं होती है।
पितृव्यादे
मातुः सहजगनतः किं सुखमपि।
ऐसा
व्यक्ति दीर्घायु तथा शत्रुओ पर विजय पाने
वाला होता है। जातक परस्त्रीगामी होता है।
इन्हे
अपने जीवन काल में मुकदमों का सामना करना
पड़ता है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं।
अशुभ
राहु का उपाय
काला
कुत्ता घर में पाले
तो अच्छा रहेगा।
सप्तम भाव में राहु का फल
यदि
सप्तम भाव में राहु हो तो जातक
परस्त्रीगामी होता है।
ऐसे
जातक की पत्नी/पति
रोगिणी होती है।
ऐसे
व्यक्ति का वैवाहिक जीवन
बहुत ही सुखमय नहीं
होता है। चरित्र संदेहास्पद रहता है। इस जातक की
स्त्री प्रचण्डरूपा तथा झगड़ालू होती है। इसे पूर्णतः स्त्री सुख नही मिलता है।
सप्तम
भावस्थ राहु उन्मत यौवनारूढ़ युवकों को व्यभिचारी होने
के लिए अंतःप्रेरणा देता है
क्योंकि
इनकी स्त्री मधुरभाषिणी रूपयौवनसंपन्ना और आज्ञाकारिणी नहीं
होती है इनका स्वभाव
उग्र होता है।
कहा
जाता है की इनकी
दो शादी होती है स्त्री को
प्रदर रोग तथा पुरुष को मधुमेह रोग
होता है।
अशुभ
राहु का उपाय
अपने
उम्र के 22 वें वर्ष या उसके बाद
ही शादी करे तो अच्छा रहेगा।
अष्टम भाव में राहु का फल
जन्मकुंडली
में अष्टम स्थान में राहु जातक को हष्ट-पुष्ट
बनाता है।
वह
गुप्त रोगी, व्यर्थ भाषण करने वाला, मूर्ख के साथ-साथ
क्रोधी, उदर रोगी एवं कामी होता है।
ऐसा
व्यक्ति कवि, लेखक, क्रिकेटर तथा पत्रकार होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु होता है। अष्टम में राहु होने से स्त्रीधन, किसी
सम्बन्धी के वसीयत का
धन प्राप्त होता है।
यदि
स्त्री राशि का राहु होता
है वैसे जातक की पत्नी धैर्यवती
धनसंग्रहकारिणी, तथा विश्वासयोग्य होती है।
ऐसे
व्यक्ति को मृत्यु का
ज्ञान कुछ समय पहले ही हो जाता
है।
अशुभ राहु का उपाय
चांदी
का एक चौरस टुकड़ा
अपने साथ रखें।
नवम भाव में राहु का फल
जिस
मनुष्य के जन्मकुंडली में
नवम भाव में राहु हो वह संसार
में अपने गुणों से जाना जाता
है वह विद्वान और
दयालु होता है।
यदि
नवम भाव में राहु हो तो धर्म
द्रष्टा तथा पिता से द्वेष रखने
वाला कीर्तिमान और धनी होता
है।
ऐसा
मनुष्य यात्रा करने वाला अथवा घुमक्कड़ होता है।
इस
स्थान का राहु व्यक्ति
को तीर्थयात्रा करने वाला एवं धर्मात्मा बनाता है, परंतु कभी कभी इसके विपरीत परिणाम भी देता है।
प्रवासी, वात रोगी, व्यर्थ परिश्रमी के साथ दुष्ट
भी होता है।
पिता
के धन को नष्ट
करने वाला होता है।
ऐसा
जातक सभा में विजयी तथा स्त्री की इच्छा का
पालन करने वाला होता है।
अशुभ
राहु का उपाय
प्रतिदिन
केसर का तिलक लगाए
आपका कल्याण होगा।
दशम भाव में राहु का फल
जिस
मनुष्य के जन्मकुंडली में
दशम स्थान में राहु होता है वैसा जातक
समाज में किसी न किसी रूप
में जाना जाता है।
ऐसा
जातक राजनीति में माहिर होता है। जातक की कुंडली में
राहु दशम भाव में जातक को लाभ देता
है।
कार्य
सफल कराने के साथ व्यवसाय
कराता है परंतु मंद
गति, लाभहीन अल्प संतति, अरिष्टनाशक भी बनाता है।
दशम
भाव का राहु व्यक्ति
को राजनैतिक जीवन जीने के लिए मजबूर
करने लगता है यही कारण
है यदि किसी कारणवश व्यक्ति राजनितिक जीवन नही जीता है तो राज
नेता के संपर्क में
अवश्य रहता है।
ऐसा
जातक अपने गाडी में किसी न किसी पार्टी
का झंडा अवश्य लगाता है।
आप
राजनीतिक दांव-पेंच में माहिर होते है और यह
स्थिति आपके विद्यार्थी जीवन से ही देखने
को मिलती है।
इस
भाव का राहु जातक
को चौर कर्म में कुशल बनाता है यहाँ चौर
कर्म का अर्थ किसी
के घर में घुसकर
चोरी करना नहीं है बल्कि अपने
कार्य की गुणवत्ता में
कटौती करके मुनाफा कमाना है।
यदि
राहु उच्च का है तो
व्यक्ति राजा जैसा जीवन व्यतीत करता है।
अशुभ
राहु का उपाय
दिब्यांग
को भोजन कराने से आपका कल्याण
होगा ।
एकादश भाव में राहु का फल
यदि
किसी जातक की कुंडली में
राहु ग्यारहवें भाव में है तो वैसा
व्यक्ति अपने भाई बहनो में या तो बड़ा
या सबसे छोटा होता है।
जिस
मनुष्य के लाभ स्थान
में राहु है तो वैसे
जातक को धन की
कमी नहीं होती है। वह अभिमानी तथा
सेवकों को साथ लेकर
चलने वाला होता है।
उसे
एक पुत्र संतति अवश्य होता है। उसे राजाओं से मान और
सुख प्राप्त होता है। इस स्थान में
राहु मनुष्य को बहुत बड़ा
आदमी नहीं बनने देता है। ऐसा जातक अपने इन्द्रियों को दमन करने
वाला होता है।
अशुभ
राहु का उपाय
चांदी
का चौरस टुकड़ा अपने पास रखना चाहिए
बारहवें भाव में राहु का फल
जिस
मनुष्य के जन्मकुंडली के
बारहवें भाव में राहु हो वह व्यक्ति
जितना भी काम करेगा
उसे उतना नहीं मिलता है बल्कि उसके
काम बिगड़ते रहते हैं।
उसे
नेत्र रोग तथा पैर में जख्म जरूर होता है। ऐसा मनुष्य झगड़ा करने वाला तथा इधर-उधर घूमने वाला होता है।
यह
व्यक्ति अपने पैतृक निवास को छोड़कर अन्यत्र
रहता है। इसे देर रात तक नींद नही
आती है।
यदि
यह जातक एक जगह स्थिर
होकर कार्य करे तो इसकी सभी
इच्छाएं पूरी होती है।
ऐसा
व्यक्ति वेद वेदांग में अभिरुचि रखता है। इनकी अल्प संतति होती है।
यदि
राहु मिथुन, धनु अथववा मीन का है तो
जातक को मुक्ति प्रदान
कराता है।
अशुभ
राहु का उपाय
हाथ
में चांदी का कड़ा पहनना
लाभप्रद होता है।
रसोई
में बैठकर खाना खाना चाहिए
राहू
केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू ज्योतिष में इन्हे दैत्य माना जाता हैं
जो
सूर्य व चन्द्र को
भी ग्रहण लग देते हैं
यह दोनों हमेंशा वक्रावस्था में रहते हुये एक दूसरे के
विपरीत भावों में रहते हैं राहू को केतू से
ज़्यादा भयानक माना गया हैं पुराणों के अनुसार कश्यप
ऋषि की 13 पत्नियों में से एक सिंहिका
का पुत्र राहू था जिसके अमृतपान
कर लेने से भगवान विष्णु
ने अपने चक्रो से दो हिस्से
कर दिये थे राहू ऊपर
का हिस्सा तथा केतू नीचे का हिस्से कहलाता
हैं।
यह
दोनों 12 राशियों का भ्रमण 18वर्षों
में करते हैं तथा एक राशि में
18माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा
केतू को मोक्षकर्ता माना
गया हैं
राहू
जिस भाव में स्थित होता हैं उस भाव से
संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा
देता हैं अर्थात कमी कर देता हैं
जबकि केतु उस भाव विशेष
से विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा
केतू को नपुंशक माना
गया हैं।
राहू
केतू के मित्र बुध,
शुक्र व शनि हैं
तथा मंगल इनसे समता रखता हैं।
यह
दोनों छायाग्रह होने के कारण जिस
राशि में होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही
फल प्रदान करते हैं। केंद्र, त्रिकोण में होने से यह कई
शुभ योग प्रदान करते हैं।
विशोन्तरी
दशा में राहू को 18 तथा केतू को 7 वर्ष दिये गए हैं।
किसी
जातक की कुण्डली
में राहू की दशा या
अंतरदशा चल रही हो
तो उसे क्या समस्या आएगी।
अपनी
कुण्डली विश्लेषण के दौरान जातक
का यह सबसे कॉमन
सवाल होता है और किसी
भी ज्योतिषी के
लिए इस सवाल का
जवाब देना सबसे मुश्किल काम होता है।
राहू
की महादशा में अंतरदशाएं इस क्रम में
आती हैं राहू-गुरू-शनि-बुध-केतू-शुक्र-सूर्य- चंद्र और आखिर में
मंगल। किसी भी महादशा की
पहली अंतरदशा में उस महादशा का
प्रभाव ठीक प्रकार नहीं आता है। इसे छिद्र दशा कहते हैं।
राहू
के आखिरी छह साल सबसे
खराब होते हैं, इस दौर में
जब जातक ज्योतिषी के
पास आता है तब तक
उसकी नींद प्रभावित हो चुकी होती
है, यहां नींद प्रभावित का अर्थ केवल
नींद उड़ना नहीं है, नींद लेने का चक्र प्रभावित
होता है और नींद
की Quality में गिरावट आती है।
राहू
की तीनों प्रमुख समस्याएं यानी वात रोग, दिमागी फितूर और प्रभावित हुई
नींद जातक के निर्णयों को
प्रभावित करने लगते हैं।इसका नतीजा यह होता है
कि जातक के प्रमुख निर्णय
गलत होने लगते हैं।
एक
गलती को सुधारने की
कोशिश में जातक दूसरी और तीसरी गलतियां
करता चला जाता है और काफी
गहरे तक फंस जाता
है।ज्योतिष के क्षेत्र में
एकमात्र राहू की ही समस्याएं ऐसी है जो दीर्धकाल
तक चलती है।
राहू
के समाधान के लिए कोई
एकल ठोस उपाय कारगर नहीं होता है।
राहू के उपचार शुरू
करने के बाद कई
जातक जैसे ही थोड़ा आराम
की Position में आते हैं, वे उपचारों में
ढील करनी शुरू कर देते हैं,
इसका Result यह होता है
कि जातक फिर से पहले
Condition पर पहुंच जाता है।
दोस्तों इस पोस्ट में आपको राहु के बारे में बताया गया है साथ ही उससे बचने के उपाय भी बताये गए हैं| अगर आप सब को पोस्ट पसंद आये तो प्लीज लाइक शेयर और कमेंट्स जरूर करें
धन्यवाद
दोस्तों इस पोस्ट में आपको राहु के बारे में बताया गया है साथ ही उससे बचने के उपाय भी बताये गए हैं| अगर आप सब को पोस्ट पसंद आये तो प्लीज लाइक शेयर और कमेंट्स जरूर करें
धन्यवाद
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